Tuesday, April 19, 2016

                     रेडियो के उस पार की एक छोटी सी कहानी ..!!
              


अच्छा आपने कभी सोचा है कि अक्सर रेडियो पर जो हंसता हुआ शख्श आपसे बात करता है क्या वो वाकई स्टूडियो में बैठ कर मुस्कुरा रहा होता है ? शायद नहीं.. है ना...क्योंकि है तो वो भी इंसान ही, बिलकुल हमारी तरह... उसमें भी हमारी तरह ही इमोशन हैं।
आज मैं बात कर रही हूँ अपनी एक अज़ीज़ दोस्त की, जिसे मैंने कॉलेज के दिनों से रेडियो पर बोलते हुए सुना है। या यूं कहूं तो माइक बंद कर उसे कई बार रोते हुए भी सुना है। बात उस दिन की है जब मै फ़ोन पर उससे बात कर रही थी, अचानक वो रोने लगी... रुआंसे गले से वो बोली... सुधा... मम्मी हॉस्पिटल में हैं... मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा अभी मेरा शो चल रहा है छोड़ नहीं सकती। और घर पर भी कोई नहीं है।स वक्त मुझे लगा कि मैं अचानक से बड़ी हो गई, मैंने उसे चुप कराया और समझाया कि सब ठीक है। पर सच कहूं तो मेरे पास उसे कहने के लिए इस कठिन वक़्त में कुछ नहीं था फिर भी उसे हिम्मत देने की कोशिश कर रही थी लेकिन अचानक उसने कहा रुको मेरा लिंक (रेडियो पर व एयर) आने वाला है.....मै फ़ोन पर ही थी और मैंने सुना कि उसने झट से अपने आंसू पोछते हुए कान में हैडफोन लगाया और माइक ऑन करते ही मुस्कुरा कर अपना संवाद (Rj Talk) पूरा करने लगी....
वाकई 2 मिनट के लिए मैं खुद को उससे छोटा महसूस कर रही थी क्योंकि जो काम वो कर रही है वह करना मेरे लिए बहुत मुश्किल है। रो कर दूसरों को हंसाना हर कोई नहीं कर सकता। हमनें कभी कल्पना भी नहीं की होगी कि उस 2 मिनट के लिंक के लिए आरजे कितनी मेहनत करते हैं या अपने दुःख को छुपाते है क्योंकि उनके लिए उनकी प्रॉब्लम उनके लिस्नर्स की स्माइल से बड़ी नहीं होती।
मेरा ये सलाम उस हर आरजे के लिए है जिसने हमेशा अच्छे गाने और अच्छी बातों से सबको हंसाया है।

I salute your work and the way you work Anjani, this is for you…..
Since 5 years your voice has been buzzing in every one’s ears and that is your image, your reputation and this is your wealth which you have earned by yourself. I m very proud of you. You are my best friend....!!!



Monday, April 4, 2016

                                 Stop Being Judgmental

अरे यार वो... वो लड़का तो बहुत बड़ा वाला चेंप है... वो स्ट्रेट बाल वाली बंदी तो बड़ी चालू टाइप है। 
किसी को पहली नज़र में देख कर या सुनी सुनाई बातों के आधार पर ये लाइन हम अक्सर बिना सोचे बोल देते हैं। हम बहुत जल्दी किसी बात पर अपनी राय दे देते हैं, लेकिन कभी यह सोचने की ज़हमत तक नहीं उठाते कि क्या हमारा जजमेंटल रवैया किसी को दुःख पंहुचा सकता है। किसी के बारे में बहुत जल्दी राय बनाने वालों को जब मैं अपने आसपास देखती हूँ तो लगता है कि क्या किसी इंसान की परख इतनी जल्दी संभव है। या यह सिर्फ एक प्रयास होता है किसी को पहचानने का . बात चाहें कुछ भी हो लेकिन मैं दाद देती हूँ ऐसे लोगों की जो सिर्फ शक्ल या कपड़े देखकर लोगों के कैरेक्टर के बारे में 100 बातें कह जाते हैं।
राह चलते किसी के साथ बात करते हुए हम इतने जजमेंटल हो जाते है कि इंसान की असली काबिलियत हमें सालों बाद नज़र आती है। पता नहीं क्यों लेकिन मुझे इस वाक्य पर कतई विश्वास नहीं कि "फर्स्ट इम्प्रेशन इज़ द लास्ट इम्प्रेशन" आप ही सोचिये, आखिर यह कैसे संभव है कि हम 2 मिनट में किसी इंसान को समझ लें कि वो क्या और कैसा है। क्या उसके ब्रांडेड जूते हमें बताते है की वह व्यक्ति कैसा है ? या उसकी हाफ स्लीव्स बताती है की वह लड़की उड़ी हुई है या सभ्य है। इतना ही नहीं हम तो अपने आप को इतना टैलेंटेड समझते है कि लाखों खर्च पर हो रही शादी में खाना के पहले निवाले के संग ही बता देते हैं कि यार, लड़का-लड़की की जोड़ी कुछ जमी नहीं।
वाह !!!क्या बात है। मुझे लगता है शादी भी एक फेसबुक प्रोफाइल की तरह हो गई है जहां लोग आशीर्वाद से ज़्यादा लाइक-कमेंट देने में यकीन रखते हैं। अगर मेरी बात पर यकीन नहीं होता तो आप अपने आस पास खड़े किसी पर भी यह ट्रिक आजमा कर देख सकते हैं। किसी की व्हाट्सएप- एफबी डीपी दिखाकर पूछिए... भाई बता तो ये लड़की कैसी है? सामने से जो जवाब आएगा वो बताने की ज़रूरत नहीं आप समझ गए होंगे। यह जवाब उसके विचार और संस्कार को बयां करते हैं ना कि उस डीपी में लगी फोटो को। मेरा मानना है कि हम जब किसी को जज करते हैं तो हमारे मन में आने वाले विचार सामने वाले के रूप रेखा या रंग को देख कर नहीं बल्कि उसके व्यवहार के आधार पर होना चाहिए। आराम से सोचिये.. कि क्या आपका किसी व्यक्ति के प्रति बहुत जल्द जजमेंटल होना सही है? या आप थोडा इंतज़ार कर सकते हैं उसके बोलने का कि वह व्यक्ति वाकई कितना सभ्य है ?
सुधा वर्मा

Saturday, January 16, 2016

           एजुकेशन बिजनेस के सच को दिखाती है 'चॉक एंड डस्टर'

    व्यापारियों के कंधो पर टिके आज के वर्तमान स्कूल शिक्षा व्यवस्था पर आधारित ''चॉक एंड डस्टर''....

130 मिनट की फिल्म 'चॉक एंड डस्टर' ऐसी कहानी पर आधारित है जो आज के एजुकेशन सिस्टम पर सवाल उठाता है। फिल्म में दिखाया गया है कि क्या बड़ी-बड़ी बिल्डिंग पर खड़ी इमारते ही नंबर 1 स्कूल का खिताब जीत सकती है। या एक ऐसे टीचर्स से भरा स्टाफ रूम जिसके लिए बच्चे केवल स्टूडेंट ही नहीं बल्कि उनके लिए वो गिली मिट्टी होते हैं जिसे निखार कर वह आईआईटी और एम्स जैसे विश्वविद्यालयों के लिए तैयार करते हैं।

भले ही वर्तमान समय में हम उन सभी टीचर्स को भूल जाते है, जिन्होनें हमें ABCD.. और 1234.. की गिनती सिखाई है, हमें यह नहीं भूलना चाहिए की बड़ी इमारतें और अच्छे इंस्फ्रास्ट्रक्चर ही अच्छे स्कूल की परिभाषा हैं।

डायरेक्टर जयंत गिलतर की शानदार निर्देशन और शबाना आजमी के बेहतरीन एक्टिंग से सजी इस फिल्म को देखने भले ही पूरे थिएटर में 5 या 6 लोग हो, लेकिन मैं जो इस हॉल में बैठी 7वीं सदस्य हूं। यह दावे से कह सकती हूं, कि यह वह 6 लोग हैं जिन्हें अच्छे फिल्मों की पहचान है।

मिर्च-मसाले और फैंटेसी फिल्मों से हट कर बनी इस फिल्म की कहानी ऐसे स्कूल की है, जहां की बागडोर एक ऐसे युवा और नासमझ प्रिंसिपल के हाथों जाती है जो एजुकेशन को बिजनेस का रूप देने के लिए स्कूल की काबिल टीचर विद्या (शबाना आजमी) को निकाल देता है। वहीं फिल्म की को-एक्टर जूही चावला ने अपने दमदार एक्टिंग से फिल्म में जान डाल दी है। दोनों ही सीनियर कलाकारों की जुगलबंदी ने फिल्म को खास बनाया है। साथ ही निगेटिव किरदार में दिव्या दत्ता भी अपने कैरेक्टर के साथ न्याय करती नजर आई हैं।

ओवरऑल फिल्म छोटी और अच्छी कहानी पर आधारित अच्छे कंटेंट और डायलॉग्स के साथ पर्दे पर उतारी गई है। हां अंत में बस इतना की अगर आप इस फिल्म को देखने की प्लानिंग कर रहे हैं, तो अपने बच्चे को साथ ले जाना ना भूलें। क्योंकि इस फिल्म से वह ऐसी बातें सीख सकता हैं जो उसे 400 पन्नों के बुक में नहीं मिलेगी। आगे मर्जी और समय आपका है।